वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग | Vaidyanath Jyotirling
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को वैद्यनाथ धाम या देवघर के नाम से भी जानते हैं, जो बिहार राज्य के संथाल परगना के दुमका जिले में स्थित है। प्राचीन कथा के अनुसार लंकापति रावण ने कठिन तपस्या से शिव भगवान को प्रसन्न कर एक शिवलिंग प्राप्त किया, जिसे वह लंका ले जाना चाहता था, परंतु ईश्वरीय कृपा से वह शिवलिंग वैद्यनाथ धाम में ही स्थापित हो गया।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के संबंध में श्लोक-
श्लोक-
पूर्वोत्तरे पारलिकाभिधाने, सदाशिवं तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मम्, श्री वैद्यनाथं सततं नमामि।।
पूर्वोत्तरे पारलिकाभिधाने, सदाशिवं तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मम्, श्री वैद्यनाथं सततं नमामि।।
कथा
शिव पुराण में वर्णित कथा
के अनुसार एक बार रावण ने शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर जाकर कठोर तपस्या की। उसने एक-एक कर अपने 9 सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिए। लंकापति रावण जब अपना 10वाँ शीश काटने ही वाला था कि उसी दौरान शिव भगवान प्रसन्न होकर प्रगट हो गए।
शिव भगवान
ने रावण के सभी सिर यथावत कर कहा- ‘हे लंकापति रावण! में तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ, माँगों क्या वर चाहिए तुम्हें?’ लंकापति रावण ने कहा- ‘ प्रभु! मेरी इच्छा है कि आप हमेशा के लिए लंका नगरी में ही निवास करें।’ शिव भगवान ने कहा- ‘ऐसा असंभव है, यदि तुम चाहो तो मेरा ज्योतिर्लिंग लेकर जा सकते हो, यह ज्योतिर्लिंग मेरा ही स्वरूप होगा। इसे रास्ते
में मत रखना, क्योंकि जहाँ इसे रखोगे, यह वहीं स्थापित हो जाएगा।’
रावण खुश
होकर शिवलिंग को अपने साथ लेकर लंका नगरी की तरफ प्रस्थान कर गया। देवता नहीं चाहते थे कि शिव भगवान हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में लंका नगरी में जाकर निवास
करें। देवताओं ने एक ऐसा उपाय सोचा, जिससे रावण शिवलिंग को अपने साथ लंका नगरी ले जाने में विफल हो जाए।
रावण ज्योतिर्लिंग को साथ लेकर आकाश मार्ग से
जाने लगा, तो वरूणदेव ने उसके पेट में प्रवेश किया। इससे रावण को लघुशंका का अहसास हुआ और विवश होकर उसे धरती पर उतरना पड़ा। जहाँ रावण उतरा, वहाँ भगवान विष्णु ब्राहमण के वेश में खड़े हुए थे। रावण ने ब्राहमण से ज्योतिर्लिंग को हाथों में पकड़ने का आग्रह
किया, ताकि स्वयं लघुशंका से निवृत हो सके। रावण ने उस ज्योतिर्लिंग को धरती पर न रखने का निर्देश भी दिया। ब्राहमण ने तुरंत ही उस ज्योतिर्लिंग को हाथों में पकड़ लिया।
ब्राहमण के रूप में विष्णु भगवान
ने रावण से कहा- “बहुत देर हो गई है, मैं अब और देर तक ज्योतिर्लिंग को हाथों में नहीं उठा
सकता।“ इतना कहकर ब्राहमण ने ज्योतिर्लिंग को धरती पर रख दिया। बाद में रावण की लघुशंका भी समाप्त हो गई, लेकिन धरती का स्पर्श होने से
रावण उस ज्योतिर्लिंग को धरती से उठा नहीं सका।
रावण को शिव भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित
होकर ज्योतिर्लिंग पर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया। बाद में ब्रहमा, विष्णु आदि देवताओं ने उस ज्योतिर्लिंग की पूजा की। शिव
भगवान का दर्शन पाकर सभी देवताओं ने ज्योतिर्लिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति कर वापस स्वर्ग की ओर
चले गए।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हे। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार प्रतिदिन प्रातःकाल और संध्या के समय इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम जपने से या दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप, कष्ट दूर हो जाते हैं।
शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों से संबंधित श्लोक इस प्रकार हैं-
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।
हिमालये च केदारं डाकिन्यां भीमशंकरम्।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतम पापम् स्मरनिणां विनस्यति।।
सप्तजन्मकृतम पापम् स्मरनिणां विनस्यति।।
वास्तव में 64 ज्योतिर्लिंगों को माना जाता है, लेकिन इनमें से 12 ज्योतिर्लिंगों को सबसे पवित्र माना जाता है।
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