नागेश्वर ज्योतिर्लिंग | Nageshwar Jyotirling
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
गुजरात प्रांत के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका नामक स्थान पर
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। शिव भगवान
का एक नाम नागेश्वर भी है। ग्रंथों के अनुसार शिव भगवान नागों के देवता हैं। द्वारिका नामक स्थान से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 17 मील है। इस ज्योतिर्लिंग को “नागनाथ मंदिर” भी कहा जाता है।
जो श्रद्धालु
सच्ची श्रद्धा के साथ नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए आते
हैं, उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के संबंध में श्लोक-
श्लोक-
याम्ये सदंगे नगरेऽतिरम्ये, विभूषिताडं विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्ति मुक्ति प्रदमीशमेकम्, श्री नागनाथं शरणं प्रपद्यै।।
याम्ये सदंगे नगरेऽतिरम्ये, विभूषिताडं विविधैश्च भोगै:।
सद्भक्ति मुक्ति प्रदमीशमेकम्, श्री नागनाथं शरणं प्रपद्यै।।
कथा
शिव पुराण में कथा
के अनुसार ‘सुप्रिय’ नाम का एक सदाचारी वैश्य था, जो शिव भगवान का परम भक्त था और हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहता था। ‘दारूक’ नाम का राक्षस सुप्रिय की इस शिवभक्ति को देखकर उससे बहुत ही क्रोधित रहता था। उस राक्षस को सुप्रिय की शिवभक्ति नापसंद नहीं थी। वह
राक्षस हमेशा सुप्रिय की पूजा में अड़चन डालने का प्रयास करता रहता था।
एक दिन
की बात है- सुप्रिय नाव में सवार होकर दूसरे राज्य की तरफ
जा रहा था, तभी दारूक राक्षस ने नाव पर हमला कर दिया। उसने नाव में सवार सभी यात्रियों को पकड़ कर जेल में ड़ाल दिया। सुप्रिय जेल में भी पहले की तरह शिव भगवान की पूजा करने लगा।
जेल में बंद अन्य बंदियों को भी सुप्रिय शिव भगवान की पूजा करने के
लिए प्रेरित लगा। दारूक राक्षस को जब सुप्रिय और अन्य बंदियों के शिव
भगवान की भक्ति में लीन रहने का समाचार प्राप्त हुआ, तो वह क्रोधित होकर जेल में पहुँच गया। सुप्रिय उस समय दोनों आँखें बंद कर ध्यान लगाए हुए बैठा था।
दारूक राक्षस सुप्रिय को डाँटते हुए बोला- ‘अरे मूर्ख, तू अपनी आँखें बंदकर, इस जेल में कौन से षड़यंत्र की तैयारी कर रहा है?’ दारूक
राक्षस के इतना कहने पर भी सुप्रिय का ध्यान भंग नहीं हुआ। दारूक राक्षस ने क्रोधित होकर सुप्रिय सहित अन्य बंदियों को भी मारने का आदेश दे दिया। सुप्रिय दारूक राक्षस के इस आदेश से बिल्कुल भी
भयभीत नहीं हुआ और एकाग्र होकर भगवान शिव से बंदियों की मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगा। उसे विश्वास था कि शिव भगवान इस विपत्ति से जरूर मुक्ति दिलाएँगे।
सुप्रिय भक्त की प्रार्थना सुनकर शिव भगवान उस जेल
में ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट हो गए
और सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना ‘पाशुपत’ नामक अस्त्र भी दिया। इसी अस्त्र से सुप्रिय ने दारूक राक्षस और उसके सेवकों का संहार किया। शिव भगवान के आदेश के अनुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हे। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार प्रतिदिन
प्रातःकाल और संध्या के समय इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम जपने से या दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप या कष्ट दूर हो जाते हैं।
शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों से संबंधित श्लोक इस प्रकार हैं-
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।
हिमालये च केदारं डाकिन्यां भीमशंकरम्।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतम पापम् स्मरनिणां विनस्यति।।
सप्तजन्मकृतम पापम् स्मरनिणां विनस्यति।।
वास्तव में 64 ज्योतिर्लिंगों को माना जाता है, लेकिन इनमें से 12 ज्योतिर्लिंगों को सबसे पवित्र माना जाता है।
Post a Comment