पूजा घर का वास्तु शास्त्र | Pooja Ghar Ka Vastu Shastra
पूजा घर से संबंधित कुछ वास्तु सलाह-
हर हिन्दू घर में पूजा-पाठ करने का एक स्थान जरूर होता है, लेकिन जाने-अनजाने में घर में मंदिर या पूजा-पाठ का स्थान बनवाते समय बिना वास्तु की जानकारी के छोटी-छोटी गलतियाँ हो जाती है। घर के पूजा-स्थल में देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापित करते समय सावधानियाँ बरतनी चाहिए।
वास्तु शास्त्रानुसार घर में पूजा-स्थल बनवाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- पूजा स्थल को उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में स्थापित करने से ज्ञान की वृद्धि होती है।
- गणेश जी की मूर्ति की स्थापना पूर्व या पश्चिम दिशा में ना करके दक्षिण दिशा में करनी चाहिए तथा मुख हमेशा उत्तर दिशा की तरफ रखना चाहिए।
- पूजा स्थल में देवी-देवताओं की प्रतिमा या चित्र पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होने चाहिए।
- शयनकक्ष (बैडरूम) में देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापित नहीं करनी चाहिए।
- दक्षिण दिशा में पूजा स्थल स्थापित नहीं करना चाहिए।
- पूजा स्थल को शौचालय या स्नानघर के आस-पास तथा ऊपर या नीचे नहीं बनाना चाहिए।
- पूजा स्थल में पूजा का सामान पश्चिम या दक्षिण दिशा की तरफ रखना चाहिए।
- पूजा के कमरे में दीपक रखने की जगह तथा हवन कुंड पूर्व दिशा में होना चाहिए।
- पूजा स्थल में मंदिर इस तरह होना चाहिए कि जातक का मुख दक्षिण दिशा की तरफ न हो तथा पूजा स्थल के दरवाजे दो पल्ले वाले होने चाहिए।
- पूजा स्थल में टूटी हुई (खंड़ित) मूर्ति या तस्वीर नहीं होनी चाहिए तथा मूर्ति का आकार भी छोटा होना चाहिए।
- हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति को उत्तर दिशा में स्थापित करना शुभ होता है, उत्तर दिशा में स्थापित होने से उनकी दृष्टि दक्षिण दिशा में बनी रहती है।
- घर में शिवालय नहीं बनाना चाहिए, लेकिन अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति के साथ भगवान शिव की तस्वीर या मूर्ति रखी जा सकती है।
- साफ-सफाई करते वक्त यदि पूजा स्थल से कोई सामान हटाना हो तो उसे नदी या जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।
- घर में पूजा स्थल को पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए तथा सोते समय जातक के पैर मंदिर की ओर नहीं होने चाहिए।
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