वास्तु शास्त्र क्या है | Vastu Shastra Kya Hai

वास्तु शास्त्र क्या है?


‘वास्तु’ शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘विद्यमान’ अर्थात निवास करना होता है। वास्तु शास्त्र एक ऐसी प्राचीन पद्धति या वैदिक विज्ञान है, जो भारत में कई हजार सालों से भवन या घर के निर्माण में इस्तेमाल होती रही है। वास्तु शास्त्र प्राचीन काल का एक ऐसा विज्ञान है, जो किसी भी जगह, घर, दुकान, इमारत आदि का निर्माण, उसमें रहना तथा इस्तेमाल करना और उससे शुभ-अशुभ प्रभावों ंकी जानकारी देता है। साधारण शब्दों में वास्तु शास्त्र भवन निर्माण का विज्ञान है। वास्तु शास्त्र एक पौराणिक सनातन धर्म ज्ञान है, जो हमें ऐसे भवन या घर का निर्माण करने की कला सिखाता है, जिसमें नकारात्मक शक्तियाँ अपना बुरा प्रभाव ड़ालने में असफल हो जाती हैं। वास्तु शास्त्र का सिद्धांत आठ दिशाओं और पंच महाभूतों जैसे आकाश, प्रथ्वी, वायु, अग्नि तथा जल के प्रवाह को ध्यान में रखकर बनाया गया है। भगवान विश्वकर्मा को वास्तु शास्त्र का देवता माना गया है। 

संपूर्ण ब्रहमाण्ड में दो तरह की शक्तियों सकारात्मक शक्ति और नकारात्मक शक्ति का संचार होता है। इन दोनों के संतुलन से ही पूरी सृष्टि चलायमान है। घर, दुकान, कारखाना, भवन, इमारत आदि का निर्माण करने से पहले उस भूखंड पर ब्रहमाण्ड की इन दोनों शक्तियों के संतुलन के लिए वास्तु शास्त्र का उपयोग किया जाता है। वास्तु शास्त्र से हमें पता चलता है कि निर्माणाधीन भूखंड में पाँच तत्वों जैसे वायु, जल, प्रथ्वी, अग्नि और आकाश का कौन सा स्थान होना चाहिए और उनके कौन-कौन से प्रभाव होते हैं। इन पाँच तत्वों में संतुलन हम किस तरह से बना सकते हैं। कौन सी जगह किस उर्जा तत्व की है और संपूर्ण निर्माण किस तरह से संतुलित किया जा सकता है।  

वास्तु शास्त्र प्रथ्वी की ऊर्जा, वायु की ऊर्जा, सूर्य की ऊर्जा, चंद्रमा की ऊर्जा, आकाश की ऊर्जा, ब्रहमाण्ड की ऊर्जा, चुंबकीय ऊर्जा, विद्यूत उर्जा आदि ऊर्जाओं पर निर्भर है, जो प्रकृति ने हमें निःशुल्क दी हैं। यदि मनुष्य इन सभी ऊर्जाओं का खुशी-खुशी इस्तेमाल करता है, तो वह मानसिक शांति, आंतरिक खुशी, सुख-समृद्धि आदि को प्राप्त करता है। वास्तु शास्त्र का उपयोग हम सभी तरह के भवन या इमारत के निर्माण के लिए कर सकते हैं। 

किसी भी भूखंड पर निर्माण के लिए तीन बल जैसे- जल, अग्नि और वायु जरूरी हैं, जो भूखंड पर निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वास्तु शास्त्रानुसार अगर ये तीनों बल सही जगह पर स्थित होंगे, तो वहाँ पूर्ण सदभाव और शांति बनी रहेगी। यदि इन तीनों बलों की जगह में परिवर्तन या गड़बड़ी होती है, जैसे अग्नि की जगह वायु या जल को रखा जाए तो इस गलत संयोजन का हमारे जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

No comments