शुचीन्द्रम शक्तिपीठ | Suchindram Shaktipeeth


शुचीन्द्रम शक्तिपीठ
शुचीन्द्रम शक्तिपीठ कोशुची शक्तिपीठभी कहा जाता है। इसी स्थान पर देवी माँ ने महाराक्षसबाणासुर” को मारा था। यहीं पर देवराज इन्द्र को महर्षि गौतम के श्राप से मुक्ति मिली थी। यहां विशेष उत्सवों  जैसे- नवरात्र, चैत्र पूर्णिमा, आषाढ़, आश्विन आमवस्या और शिवरात्रि आदि पर्वों का आयोजन किया जाता है, जिसमें हीरों से देवी मां का श्रृंगार किया जाता है।  
पुराणों के अनुसार जहाँ देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, वहाँ उनके शक्तिपीठ बन गये। ये शक्तिपीठ पावन तीर्थ कहलाये, जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
शुचीन्द्रम शक्तिपीठ में माता सती कीऊपरी दाड़” (ऊर्ध्वदंत) गिरी थी। यहाँ माता सती कोनारायणीऔर भगवान शिव कोसंहारकहा जाता है।
कथा
शुचीन्द्रम शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में शामिल है। प्राचीन कथा के अनुसार शिव भगवान के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने शिव भगवान और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा, क्योंकि राजा दक्ष शिव भगवान को अपने बराबर का नहीं मानते थे।
यह बात माता सती को सही नहीं लगी। वह बिना बुलाए ही यज्ञ में शामिल होने चली गयीं। यज्ञ स्‍थल पर शिव भगवान का अपमान किया गया, जिसे माता सती सहन नहीं कर पायीं और वहीं हवन कुण्ड में कूद गयीं।
शिव भगवान को जब ये बात पता चली, तो वे वहाँ पर पहुँच गए और माता सती के शरीर को हवनकुण्ड से निकालकर तांडव करने लगे, जिसके कारण सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में उथल-पुथल मच गई। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए विष्णु भगवान ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बाँट दिया, जो अंग जहाँ पर गिरे, वे शक्ति पीठ बन गए।


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