ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग | Omkareshwar Jyotirling


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
मध्य प्रदेश राज्य के खंडवा जिले में इंदौर शहर के पास ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के बीच शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। इसका आकार ऊं जैसा है, इसलिए इसे को ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के संबंध में श्लोक-


श्लोक-
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रसमागे सज्जनतारणाय।
सदैव मांधातृपुरे वसंतम्, ओंकारमीशं शिवमेकमीडे।।
कथा
एक बार देवर्षि नारद गिरिराज विन्ध्य पर गए। विन्ध्य जी ने बड़े आदर के साथ उनकी पूजा की। विन्ध्य जी देवर्षि नारद के सामने सोचने लगे कि- मैं सर्वगुण सम्पन्न हूँ, मेरे पास हर प्रकार की संपदा है, किसी वस्तु की कमी नहीं है।
देवर्षि नारद विन्ध्य जी की अभिमान भरी बातों को सुनकर चुपचाप खड़े रहे। बाद में विन्ध्य जी ने देवर्षि नारद से पूछा- आपको मेरे पास कौन सी कमी नजर आई, जिस कारण आप चुपचाप खड़े रहे ? देवर्षि नारद ने विन्ध्य जी को बताया- तुम्हारे पास सब कुछ है, लेकिन मेरू पर्वत तुमसे ऊँचा है। उस पर्वत का शिखर देवताओं के लोकों तक पहुँचा हुआ है। मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे शिखर का भाग वहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाएगा।  
इस बात को कहकर देवर्षि नारद चले गए। उनकी इस बात को सुनकर विन्ध्य जी दुःखी होकर मन में शोक करने लगे। उन्होंने निश्चय किया कि अब वे शिव भगवान की आराधना करेंगे। इस तरह सोचकर विन्ध्य जी शिव भगवान की सेवा में चले गए। उस जगह पर पहुँचकर उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक शिव भगवान का मिट्टी का शिवलिंग बनाया और लगातार 6 महीने तक उस शिवलिंग के पूजन में लीन रहे।
विन्ध्य जी की कठोर तपस्या देखकर शिव भगवान उस पर प्रसन्न हो गए और उन्होंने विन्ध्य जी को अपना दिव्य स्वरूप दिखाया। शिव भगवान खुश होकर विन्ध्य जी से बोले- विन्ध्य! मैं तुम से प्रसन्न हूँ, मैं अपने भक्तों को उनका अभीष्ट वर प्रदान करता हूँ, इसलिए तुम वर माँगो। विन्ध्य जी ने हाथ जोड़कर कहा- हे देवेश्वर महेश! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो हमारे कार्य की सिद्धि करने वाली वह अभीष्ट बुद्धि हमें प्रदान करें! विन्ध्य जी की प्रार्थना को पूरा करते हुए शिव भगवान बोले- पर्वतराज! मैं तुम्हें वह वर देता हूँ। जिस तरह का काम तुम करना चाहो, वैसा कर सकते हो, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।
जिस समय शिव भगवान ने विन्ध्य जी को वर दिया, उसी दौरान देव और ऋषि भी वहाँ जा पहुँचे। उन सभी ने शिव भगवान की स्तुति करने के बाद उनसे कहा- भगवान, आप हमेशा के लिए यहीं निवास करें। देवताओं और ऋषियों की बात सुनकर शिव भगवान प्रसन्न हुए और उनकी बात को स्वीकार कर लिया।
वहाँ पर स्थित एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में विभाजित हो गया। प्रणव के अंतर्गत जो सदाशिव विद्यमान हुए उन्हें ओंकार नाम से जाना जाता है। इसी तरह पार्थिव मूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई, वह परमेश्वर लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुई। परमेश्वर लिंग को ही अमलेश्वर कहा जाता है। इस तरह ओंकारेश्वर और परमेश्वर नाम से शिव भगवान के ये ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध हुए।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हे। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार हर रोज प्रातःकाल और संध्या के समय इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम जपने से या दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप या कष्ट दूर हो जाते हैं।
यहां दिए गए निम्नलिखित श्लोकों को पढ़ते हुए जो व्यक्ति सभी 12 ज्योतिर्लिंगों का मन से ध्यान करता है, उसके सातों जन्म के पाप या कष्ट नष्ट हो जाते हैं। वास्तव में 64 ज्योतिर्लिंगों को माना जाता है, लेकिन इनमें से 12 ज्योतिर्लिंगों को ही सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों से संबंधित श्लोक इस प्रकार हैं-


सौराष्ट्रे सोमनाथं  श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।


हिमालये  केदारं डाकिन्यां भीमशंकरम्।
वाराणस्यां  विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।


वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतुबन्धे  रामेशं घुश्मेशं  शिवालये।।

ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः। 
सप्तजन्मकृतम पापम् स्मरनिणां विनस्यति।।








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