श्री शिव चालीसा | Shri Shiv Chalisa
श्री शिव चालीसा में शिव जी के कार्यों का वर्णन किया गया है| श्री शिव चालीसा में ४२ चौपाई और ३ दोहे दिए गए हैं, जिनमे १ दोहा शुरुआत में और २ दोहे अंत में दिए गए हैं|
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजासुवन मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम देउ अभय वरदान॥
कहत अयोध्यादास तुम देउ अभय वरदान॥
॥चौपाई॥
जय गिरिजापति दीनदयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नाग फनी के॥
कानन कुण्डल नाग फनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन क्षार लगाये॥
मुण्डमाल तन क्षार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देखि नाग मन मोहे॥
छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु कि हवे दुलारी।
वाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
वाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नंदी गणेश सोहैं तहं कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि कौ कहि जात न काऊ॥
या छवि कौ कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तबहिं दुख प्रभु आप निवारा॥
तबहिं दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लव निमेष महं मारि गिरायउ॥
लव निमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
तबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
तबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई।
अकथ अनादि भेद नहीं पाई॥
अकथ अनादि भेद नहीं पाई॥
प्रकटे उदधि मंथन में ज्वाला।
जरत सुरासुर भए विहाला॥
जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई।
नीलकंठ तब नाम कहाई॥
नीलकंठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हां।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी।
करत कृपा सबके घट वासी॥
करत कृपा सबके घट वासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं।
भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवैं॥
भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवैं॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
यह अवसर मोहि आन उबारो॥
यह अवसर मोहि आन उबारो॥
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहिं आन उबारो॥
संकट से मोहिं आन उबारो॥
मात पिता भ्राता सब कोई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु मम संकट भारी॥
आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा ही।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करों तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
शारद नारद शीश नवावैं॥
शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर होत हैं शम्भु सहाई॥
ता पर होत हैं शम्भु सहाई॥
रनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन की इच्छा जोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे॥
ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।
तन नहिं ताके रहै कलेशा॥
तन नहिं ताके रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।
जानि सकल दुख हरहु हमारी॥
जानि सकल दुख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित नेम उठि प्रातः ही पाठ करो चालीस।
तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो जगदीश॥
तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि पूर्ण कीन कल्याण॥
अस्तुति चालीसा शिवहि पूर्ण कीन कल्याण॥
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