सोमनाथ ज्योतिर्लिंग | Somnath Jyotirling
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
गुजरात के
(सौराष्ट्र) प्रभास
क्षेत्र के
वेरावल में
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित
है। यह
एक प्राचीन
ज्योतिर्लिंग है,
जिसकी गिनती
12 ज्योतिर्लिंगों में
पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती
है। प्राचीन
मान्यताओं के अनुसार
चन्द्रदेव ने
सोमनाथ महादेव
का स्वर्ण
मंदिर बनाया
था, इसका
नाम सोमनाथ
मंदिर रखा
गया। इस मंदिर का जिक्र ऋग्वेद में
भी है। सोमनाथ
मंदिर को
17 बार नष्ट
किया गया
और हर
बार इसका
दोबारा निर्माण किया
गया।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के संबंध में श्लोक निम्नलिखित है-
श्लोक-
सौराष्ट्र देशे विशवेऽतिरम्ये, ज्योतिर्मय चंद्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृतावतारम् तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।
सौराष्ट्र देशे विशवेऽतिरम्ये, ज्योतिर्मय चंद्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृतावतारम् तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये।।
जानकारी
सोमनाथ मंदिर
एक विश्व
प्रसिद्ध धार्मिक
तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। मंदिर प्रांगण
में रात
7:30 बजे से
8:30 बजे तक
एक घंटे
का साउंड
और लाइट
शो भी
चलता है,
जिसमें सोमनाथ
मंदिर के
इतिहास का
बहुत ही
सुन्दर चित्र
सहित चित्रण
किया जाता
है। यह
मंदिर दुनिया
के सबसे
अमीर मंदिरों
में से
एक है।
यहीं पर
भगवान श्री
कृष्ण ने
अपनी देह
का त्याग
किया था।
इसी कारण
इस क्षेत्र
का महत्व
और भी
बढ़ गया।
मान्यता है
कि जब श्रीकृष्ण भालुका
तीर्थ पर
विश्राम कर
रहे थे।
तब “जरा” नामक
शिकारी ने
उनके पैर
के तलुए
में पद्दचिन्ह को हिरन की आँख जानकर
धोखे में
तीर मारा
था, जिसके
कारण श्री
कृष्ण ने
देह त्यागकर
यहीं से
वैकुण्ठ गमन
किया। सोमनाथ
ज्योतिर्लिंग को
भारत के
12 ज्योतिर्लिंगों में
से एक
माना जाता
है, इस
शिवलिंग के
यहाँ स्थापित
होने की
बहुत सी
पौराणिक कथाएँ
है। इन
पवित्र ज्योतिर्लिंगों की स्थापना वहीं
की गयी
है, जहाँ
शिव भगवान
ने अपने
दर्शन दिए
थे।
सोमनाथ मंदिर
में पार्वती
देवी, सरस्वती
देवी, लक्ष्मी
देवी, गंगा
देवी और
नंदी की
मूर्तियाँ भी
स्थापित हैं।
भूमि के
उपरी भाग
में शिवलिंग
से उपर
“अह्ल्येश्वर” की
मूर्ति है।
मंदिर परिसर
में गणेश
जी का
मंदिर है
और उत्तरी
द्वार के
बाहर “अघोरलिंग” की मूर्ति स्थापित
है। प्रभावनगर में अहल्याबाई मंदिर
के पास
ही महाकाली
का मंदिर
है। नगर
के द्वार
के पास
गौरीकुण्ड नामक
सरोवर है,
जिसके पास
एक प्राचीन
शिवलिंग है।
सोमनाथ भगवान
की पूजा
और उपासना
करने से
भक्तों के
तपेदिक तथा
कोढ़ की
बीमारी नष्ट
हो जाते
हैं। प्रभास
क्षेत्र में
सभी देवताओं
ने मिलकर
एक सोमकुण्ड की स्थापना की थी। लोगों
का मानना
है कि
इस कुण्ड
में शिव
जी तथा ब्रह्मा
जी निवास
करते हैं।
इस पृथ्वी
पर यह
चन्द्रकुण्ड मनुष्यों के पापों का नाश करने
वाले के
रूप में
प्रसिद्ध है।
इसे “पापनाशक” तीर्थ
भी कहते
हैं। जो
मनुष्य चन्द्रकुण्ड में स्नान करता
हैं वह
सब प्रकार
के पापों
से मुक्त
हो जाता
है।
इतिहास
अत्यंत धनवान
होने के
कारण कई
बार यह
मंदिर तोडा
गया और
इसका पुननिर्माण किया
गया। भारत
की स्वतंत्रता के बाद “लौहपुरुष सरदार
बल्लभ भाई
पटेल”
ने वर्तमान भवन
के पुननिर्माण का आरंभ करवाया
था। 1 दिसंबर
सन. 1995 को
भारत के
राष्ट्रपति शंकर
दयाल शर्मा
ने इसे
राष्ट्र को
समर्पित किया।
सर्वप्रथम एक
मंदिर ईसा
के पूर्व
में अस्तित्व में था। इस जगह पर दूसरी बार मंदिर का पुननिर्माण 7वीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं
ने किया।
8वीं सदी
में सिंध
के अरबी
गवर्नर जुनायद
ने इसे
नष्ट करने
के लिए
अपनी सेना
भेजी। प्रतिहार राजा
नागभट्ट ने
815 ईस्वी में
इसका तीसरी
बार पुननिर्माण किया।
अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने
यात्रा वृतान्त
में इसका
विवरण लिखा,
जिससे प्रभावित हो महमूद गजनवी
ने सन.
1024 में 5000 सैनिकों
के साथ
सोमनाथ मंदिर
पर हमलाकर
उसकी सम्पत्ति लूटी
और उसे
नष्ट कर
दिया। सन.
1024 में महमूद
गजनवी ने
मंदिर नष्ट
कर दिया
था। मूर्तियों को तोड़ने तथा सोने-चाँदी
की लूट
करने के
लिए उसने
मंदिर में
तोड़फोड़ की
थी। मंदिर
के हीरे-जवाहरातों को लूटकर महमूद
गजनवी अपने
देश गजनी
चला गया
था।
उक्त सोमनाथ
मंदिर का
भग्नावशेष आज
भी समुद्र
के किनारे
विद्यमान है।
इतिहासकारों के
अनुसार जब
महमूद गजनवी
जब उस
शिवलिंग को
तोड़ नहीं
पाया, तब
उसने शिवलिंग
के आस-पास में भीषण आग लगवा दी थी। सोमनाथ
मंदिर में
नीलमणि के
56 स्तम्भ लगे
हुए थे।
इसके पश्चात
गुजरात के
राजा भीम
और मालवा
के राजा
भोज ने
मंदिर का
पुननिर्माण कराया
था। सन.
1297 में जब
दिल्ली की
सल्तनत ने
गुजरात पर
कब्ज़ा किया
तब इसे
5वी बार
गिराया गया।
मुग़ल बादशाह
औरंगजेब ने
इसे पुनः
सन. 1706 में
गिरा दिया।
कथा
शिव पुराण
में वर्णित
कथानुसार सोम
अर्थात चन्द्र
ने राजा
दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया
था। चन्द्रमा की 27 पत्नियों में से रोहिणी
उन्हें अधिक प्रिय थी, रोहिणी को चन्द्रमा विशेष
आदर तथा
प्रेम करते
थे। दक्ष
ने इस
अन्याय को
देखकर क्रोध
में आकर
चंद्रदेव को
श्राप दे
दिया कि
अब से
हर दिन
तुम्हारा तेज
क्षीण होता
रहेगा, जिसके
फलस्वरूप चन्द्र
का तेज
हर दूसरे
दिन घटने
लगा। श्राप
से दु:खी होकर
चन्द्र ने
शिव भगवान
की आराधना
शुरू की।
अंततः शिव
प्रसन्न हुए
और चन्द्र
के श्राप
का निवारण
किया। सोम
के कष्टों
को दूर
करने वाले
प्रभु शिव
का यहाँ
स्थापन करवाकर
उनका नामकरण
“सोमनाथ” हुआ।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हे। हिन्दू
धर्म की
मान्यता के
अनुसार हर
रोज प्रातःकाल और संध्या के समय इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम जपने
से या
दर्शन करने
से मनुष्य
के सारे
पाप या
कष्ट दूर
हो जाते
हैं।
वास्तव में
64 ज्योतिर्लिंगों को
माना जाता
है, लेकिन
इनमें से
12 ज्योतिर्लिंगों को
ही सबसे
महत्वपूर्ण और
पवित्र माना
जाता है।
शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों से संबंधित श्लोक इस प्रकार हैं-
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।
हिमालये च केदारं डाकिन्यां भीमशंकरम्।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतम पापम् स्मरनिणां विनस्यति।।
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