वास्तु शास्त्र में दिशा का महत्व | Vastu Shastra Me Disha Ka Mahatv

वास्तु शास्त्र में दिशाओं का महत्व


वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत अधिक महत्व है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि घर में गलत दिशा में कोई निर्माण हो जाता है, तो घर में रहने वाले परिवार को किसी ना किसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है। 

वास्तु शास्त्र में 8 दिशाएं महत्वपूर्ण मानी गई हैं, ये दिशाएं पंचतत्वों की होती हैं, जिनको घर बनाते समय ध्यान में रखना चाहिए। 


1 पूर्व दिशा- पूर्व दिशा में दरवाजे या मुख्य द्वार पर मंगलकारी तोरण लगाना शुभ माना गया है। यह सूर्योदय की दिशा है। पूर्व दिशा से सकारात्मक किरणें घर में प्रवेश करती हैं। गृह-स्वामी की लंबी आयु और संतान सुख की प्राप्ति के लिए घर के मुख्य द्वार व खिड़की का पूर्व दिशा में होना अति शुभ माना गया है।  

2 पश्चिम दिशा- पश्चिम दिशा की भूमि तुलनात्मक रूप से थोड़ी उँची होनी चाहिए। भूमि का उँचा होना सफलता और कीर्ति के लिए शुभ संकेत माना गया है। पश्चिम दिशा में टाॅयलेट या रसोईघर का निर्माण किया जा सकता है, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि दोनों का निर्माण एक साथ नहीं किया जाना चाहिए।  

3 उत्तर दिशा- उत्तर दिशा में सबसे अधिक खिड़की और दरवाजे होने चाहिए। बालकनी और वाॅश बेसिन भी उत्तर दिशा में होने चाहिए। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर करियर में रूकावट और धन की हानि होने लगती है। वास्तु के अनुसार उत्तर दिशा की भूमि का ऊंचा होना शुभ होता है।
  
4 दक्षिण दिशा- दक्षिण दिशा में किसी भी तरह का शौचालय, खुलापन आदि नहीं होना चाहिए। इस दिशा की भूमि भी तुलनात्मक रूप से थोड़ी उँची होनी चाहिए। इस दिशा की भूमि पर भार (वजन) रखने से गृहस्वामी हमेशा सुखी, समृद्ध और निरोगी होता है। धन को भी इसी दक्षिणी दिशा में रखने से उसमें हमेशा बढ़ोत्तरी होती है।

5 ईशान दिशा-  पूर्वी दिशा और उत्तरी दिशा जिस स्थान पर मिलती है, उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं। सभी दिशाओं में सर्वोत्तम दिशा ईशान दिशा है। ईशान दिशा के स्वामी भगवान शिव हैं। यह दिशा सभी दिशाओं से शुभ मानी जाती है, क्योंकि इस दिशा में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इस दिशा में कभी भी शौचालय नहीं बनाना चाहिए।

6 वायव्य दिशा- उत्तर और पश्चिम के बीच की दिशा को वायव्य दिशा कहा जाता है। घर में घरेलू नौकर है, तो उसका कमरा इसी दिशा में होना चाहिए। शयनकक्ष, गौशाला, गैरेज आदि भी इसी दिशा में होना चाहिए।

7 आग्नेय दिशा- पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा को आग्नेय दिशा कहा जाता है। यह अग्नि की दिशा है, इसलिए इसे आग्नेय दिशा कहते हैं। इस दिशा में रसोईघर, गैस, बाॅयलर, ट्रंासफाॅर्मर आदि होना चाहिए।  

8 नेऋत्य दिशा- दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा को नेऋत्य दिशा कहा जाता है। इस दिशा में खुलापन यानि खिड़की, दरवाजे बिल्कुल भी नहीं होने चाहिए। गृह-स्वामी का कमरा इस दिशा में स्थित होना चाहिए। इस दिशा में मशीनें कैश काउंटर आदि भी रख सकते हैं। 

No comments