महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग | Mahakaleshwar Jyotirling
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
मध्य प्रदेश
राज्य की
धार्मिक राजधानी
उज्जैन में
क्षिप्रा नदी
के तट
पर स्थित
एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
है। यहाँ
हर रोज सुबह के
समय की
जाने वाली
भस्मारती पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर
की पूजा
दीघार्यु प्राप्त
करने के
लिए की
जाती है।
पुराणों, महाभारत
और कालिदास
जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर
का बहुत
ही सुंदर
वर्णन है।
तांत्रिक परंपरा के अनुसार दक्षिण
मुखी पूजा
का महत्व
12 ज्योतिर्लिंगों में
सिर्फ महाकालेश्वर भगवान
को ही
प्राप्त है।
यह स्थान
‘महाकाल’ के
नाम से
प्रसिद्ध है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के संबंध में श्लोक-
श्लोक-
अवंतिकाया विहितावतारम्, मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थम्, वंदे महाकाल महासुरेशम्।।
अवंतिकाया विहितावतारम्, मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थम्, वंदे महाकाल महासुरेशम्।।
कथा
शिव पुराण
में वर्णित
प्राचीन कथानुसार अवंती
नगरी में
एक ब्राहमण
निवास करता
था, जो अपने
घर में
प्रतिदिन हवन किया
करता था।
वह ब्राहमण
शिव भगवान
के भक्त
था, उसका नाम ‘वेदप्रिय’ था।
‘वेदप्रिय’ के
चार पुत्र
हुए। चारों
पुत्र तेजस्वी
और माता-पिता के सदगुणों के अनुरूप थे। उन चारों
पुत्रों के
नाम ‘देवप्रिय’, ‘प्रियमेधा’, ‘संस्कृत’, तथा
‘सुवृत’ थे।
उस समय
‘दूषण’ नाम का
एक धर्म
विरोधी असुर
ने वेद,
धर्म, तथा
धर्मांत्माओं पर
आक्रमण कर
दिया। ‘दूषण’ को
ब्रहमा जी
से अजेयता
का वरदान
मिला हुआ
था। सबको
परेशान करने
के बाद
उस असुर
ने उज्जैन
के उन
कर्मनिष्ठ ब्राहमणों पर आक्रमण कर दिया। ‘दूषण’ की
आज्ञा पाकर
4 दैत्य
चारों दिशाओं
में आक्रमण
करने के
लिए आग
के समान
प्रकट हो
गए।
शिवभक्त तथा
ब्राहमण बन्धु
राक्षसों के
उत्पात से
भयभीत नहीं
हुए। अवन्ति
नगर के वासी सभी
ब्राहमण उन
राक्षसों से
डरकर चारों शिवभक्त
भाईयों के
पास गए।
उन चारों
शिवभक्त भाईयों
ने उन्हें
शिव भगवान पर
विश्वास करने का आश्वासन दिया।
उसके बाद
चारों शिवभक्त
भाई शिव
भगवान की
पूजा करते हुए
ध्यान में
लीन हो
गए।
दूषण राक्षस
अपनी सेना
लेकर ध्यान
में लीन
शिवभक्त भाईयों
के पास
पहुँचा। शिवभक्त
भाईयों को
देखकर राक्षस
ने अपने
सैनिकों को उन्हें बाँधकर मार ड़ालने का आदेश दिया। शिवभक्त
भाईयों ने
उस राक्षस
द्वारा कही
गई बातों
पर बिल्कुल
ध्यान नहीं
दिया और
शिव भगवान
के ध्यान
में लीन
रहे।
जब उस
दूषण राक्षस
ने यह
समझ लिया
कि डाँटने-फटकारने से कुछ भी नहीं होगा,
तब उसने
शिवभक्त भाईयों
को मारने
का निश्चय
किया। राक्षस
ने जैसे
ही उनके
प्राण लेने
के लिए
शस्त्र उठाया,
तभी शिवभक्त
भाईयों के
द्वारा पूजित
लिंग की
जगह तेज
आवाज के
साथ एक
गड्ढ़ा प्रगट
हुआ और उस
गड्ढ़े से
भयंकर रूपधारी
शिव भगवान
ही ‘महाकाल’
के रूप
में इस
धरती पर
प्रख्यात हुए।
इस तरह शिव
भगवान ने
अपनी हुँकार
से दूषण तथा अन्य राक्षसों का वध कर
दिया। देवताओं
ने खुश
होकर अपनी
दन्दुभियाँ बजाकर आकाश
से पुष्पों
की वर्षा
की।
शिव भगवान
ने शिवभक्त
भाईयों से
खुश होकर
उन्हें आश्वस्त
करते हुए
कहा- “मैं महाकाल
महेश्वर तुम
लोगों से
अति प्रसन्न
हूँ, तुम
वरदान माँगो।” शिव भगवान की वाणी सुनकर
उन भाईयों
ने हाथ
जोड़कर कहा-
“दुष्टों
को दंण्डित
करने वाले
प्रभु! आप
हम सभी
को इस
संसार के
मायाजाल से
मुक्त कर
दें तथा आम जनता
के कल्याण
के लिए
सदैव यहीं पर
विराजित रहें।”
शिव भगवान
ने उन
ब्राहमणों को
सद्गति प्रदान
की और
भक्तों की
रक्षा के
लिए उस
गड्ढ़े में
स्थित हो
गए और
गड्ढ़े के
चारों तरफ
की भूमि
लिंग रूपी
शिव भगवान स्थली
बन गई।
इस तरह भगवान शिव इस धरती
पर “महाकालेश्वर” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हे। हिन्दू
धर्म की
मान्यता के
अनुसार हर
रोज प्रातःकाल और संध्या के समय यहां दिए
गए निम्नलिखित श्लोकों
को पढ़ते
हुए जो
व्यक्ति सभी
12 ज्योतिर्लिंगों का
मन से
ध्यान करता
है, उसके
सातों जन्म
के पाप
या कष्ट
नष्ट हो
जाते हैं।
वास्तव में
64 ज्योतिर्लिंगों को
माना जाता
है, लेकिन
इनमें से
12 ज्योतिर्लिंगों को
ही सबसे
महत्वपूर्ण और
पवित्र माना
जाता है।
शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों से संबंधित श्लोक इस प्रकार हैं-
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।
उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं ममलेश्वरम्।।
हिमालये च केदारं डाकिन्यां भीमशंकरम्।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।
ऐतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतम पापम् स्मरनिणां विनस्यति।।
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